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मार्च 10, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||

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                         वाहे गुरू जी एक मालिक का प्यारा शख्श जिसका नाम करतार था  वह छोले बेचने का कारज करता था  वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||  उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी मदद करती थी  एक बार की बात है कि  एक फकीर जिसके पास खोटे सिक्के थे उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता हैं  तो वह करतार के पास छोले लेने आता हैं करतार ने खोटा  सिक्का देखकर भी  उस मालिक के प्यारे को छोले दे दिए।ऐसे ही चार-पांच दिन  उस फकीर ने करतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए और जब सारे बाजार में अब  यह बात फैल गयी की करतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता हैं पर करतार लोगों की बात सुनकर कभी जबाव नहीं देते थे.. और अपने मालिक की मौज में खुश रहते थे। एक बार जब करतार अरदास  पढ़कर उठे तो अपनी पत्नी से  बोले --- "क्या छोले तैयार हो गए..?" पत्नी बोली --- "आज तो घर में हल्दी -मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने  गयी तो सब दुकानदारों न...

मालिक की मौज, मालिक ही जाने।बात पुरानी है ग्रेट मास्टर के ti

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 मालिक की मौज, मालिक ही जाने। 🙏 बात पुरानी है ग्रेट मास्टर के टाइम की…. एक इंजीनियर साहिब ने सुनाई…. आप से शेयर कर रहा हूँ….. भंडारे पर बाबा जी 2.30 घंटे का सत्संग किया करते थे…. तब संगत या सत्संग के लिए शेड नही थे,            मालिक की मौज, मालिक ही जाने।  खुले मैं ही सत्संग होता था और रात को संगत तंबुओं मैं सोती थी….. एक बार भंडारे पर बहुत बारिश हुई, सब इंतज़ाम खराब हो गये, बाबा जी ने कह दिया की कल भी सत्संग होगा…. अब बाहर से आई संगत रात को कहाँ रुकेगी? उनके खाने , सोने का प्रबंध कहाँ और कैसे होगा? ये बहुत बड़ी प्राब्लम थी, हालाँकि तब बाहर से आई हुई संगत भी 100 -200 ही होती थी, ये फैसला हुआ के सब सेवादार थोड़ी थोड़ी संगत अपने अपने घर ले जायेंगे…और उनका खाने , सोने का प्रबंध भी खुद ही देखेंगे…. अब सब सेवदार थोड़ी थोड़ी संगत अपने अपने साथ ले गये….उनमे से जो सेवादार अमीर थे उनको क्या परवाह थी … संगत की खूब सेवा हुई…. मालिक का हुकम था…. पर  एक सेवदार बहुत ग़रीब था, वो फकीर ही था, बस भजन बंदगी करने वाला, उसका खुद का गुज़ारा जैसे तैसे होता था…. उस...

सद्गुरु को दिया वचन उसको पूरा करना है।🙏🏻🙏🏻Rssb🙏🏻🙏🏻

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                   *🙏राधास्वामी जी🙏* उठो गुरु प्यारो नाम जपने का समय हो गया है। *अमृत नाम महा रस मीठा जिसने पिया उसने सचखण्ड पाया। *"हर रात के पिछले पहर में एक गजब की (अनमोल) दौलत लुटती है। जो जागते हैं वह पाते हैं जो सोते हैं वह खोते हैं।"* एक यही वह समय है जिसमें जागने वाला कमाता है और सोने वाला गंवाता है। अमृत वेला बड़ा ही सुहाना चुपचाप है सारा जमाना। नाम दी माला जपया करो अमृत वेले उठया करो।। अमृत वेले अमृत वरसे। भर-भर अमृत पिया करो। अमृत वेले उठया करो।।  🙏🙏🙏 सद्गुरु ने याद किया है जो वादा किया है उसको निभाना है सद्गुरु को दिया वचन उसको पूरा करना है। 🙏🙏🙏 🙏गुरु प्यारो उठो🙏 ड्यूटी का समय हो गया है। मन लग्गे या ना लग्गे फर्ज समझ के बैठो। ड्यूटी समझ के बैठो। थोड़ी देर तो बैठो। *भजन-सुमरिन* शरीर से नहीं जी, *मन* से करवाओ...            🙏🙏राधास्वामी जी🙏🙏

भजन सिमरन पर ही इतना जोर क्यों देते हैं? Why do Bhajans ???

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बाबा सावन सिंह जी महाराज से एक सत्संगी ने पूछा कि हुज़ूर! आप अपने सत्संग में भजन सिमरन पर ही इतना जोर क्यों देते हैं जबकि आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमसे भजन सिमरन नहीं होता तो हज़ूर ने फ़रमाया  मैं अच्छी तरह से जानता हूँ इसीलिए तो बार बार कहता हूँ कि भजन सिमरन करो इसी जन्म में कम से कम आँखों तक सिमटाव तो करो ताकि अंत समय तुम्हें ले जाने में मुझे ख़ुशी महसूस हो  अंत समय जो सिमटाव की तकलीफ़ जीव को होती है वह असहनीय है और संतो से अपने जीव की वह तकलीफ़ देखी नहीं जाती  मैं नहीं चाहता कि आप लोग ऐसी तकलीफ में चोला छोड़ें इसलिए जितना ज्यादा हो सके सेवा के साथ साथ अभ्यास में ज़रूर वक़्त दें अक्सर अंत समय में सतगुरु अपने शिष्य का शब्द खोल देता है पर सिमटाव की वह असहनीय दर्द सहन करनी ही पड़ती है डेरे का एक सेवादार नत्था सिंह जो खूब सेवा करता था  एक बार बाबा सावन सिंह जी महाराज़ के पास गया और बोला हज़ूर मेरा दिल कर रहा है कि मैं कुछ दिनों के लिए अपने घर जाऊँ।  तो हज़ूर ने मना कर दिया कि अभी नहीं जाना इस तरह से तीन दिन हो गए संतो की हरेक बात में कोई राज़ होता है चौथे दिन ...

संत की भाषा में त्यागी कोन है ||Who is Tyagi in the language

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एक संत थे। वे भिक्षा के लिये एक सेठ के यहाँ गये।सेठ ने आकर नमस्कार किया तो संत ने भी उसको नमस्कार किया। वह संत के पैरों पड़ा तो संत भी उसके पैरों पड़े। सेठ बोला कि 'महाराज, आप कैसे पैरों पड़ते हैं?' संत बोले कि 'तुम कैसे पैरों पड़ते हो?'तो सेठ ने कहा कि 'महाराज, आप त्यागी हो, आपने स्त्री, पुत्र, धन, जमीन, जायदाद, मकान आदि का त्याग किया है, इसलिये आप बड़े हो। 'संत ने उत्तर दिया कि 'अगर त्याग को देखें तो तुम बड़े हुए,क्योंकि तुमने स्त्री, पुत्र, धन आदि के लिये भगवान का त्याग कर दिया है। बड़ी चीज भगवान है कि रुपया? त्यागी तुम बड़े हुए कि मैं बड़ा हुआ? तुम कितने बड़े त्यागी हो कि संसार के भरोसे भगवान को भी इस्तीफा देकर बैठ गये _*कहने का भाव यह है कि यदि हम अपनी चेतना को संसार के कामों में डुबोने के बजाय सतगुरु के बताए काम में थोड़ा भी समय दें तो ये हमारे द्वारा अपने रिश्ते नातों के लिए किये जा रहे त्याग से कहीं सरल और आसान है।

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🙏🙏🏻 "आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।"🙏🙏🏻