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वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||

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                         वाहे गुरू जी एक मालिक का प्यारा शख्श जिसका नाम करतार था  वह छोले बेचने का कारज करता था  वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||  उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी मदद करती थी  एक बार की बात है कि  एक फकीर जिसके पास खोटे सिक्के थे उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता हैं  तो वह करतार के पास छोले लेने आता हैं करतार ने खोटा  सिक्का देखकर भी  उस मालिक के प्यारे को छोले दे दिए।ऐसे ही चार-पांच दिन  उस फकीर ने करतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए और जब सारे बाजार में अब  यह बात फैल गयी की करतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता हैं पर करतार लोगों की बात सुनकर कभी जबाव नहीं देते थे.. और अपने मालिक की मौज में खुश रहते थे। एक बार जब करतार अरदास  पढ़कर उठे तो अपनी पत्नी से  बोले --- "क्या छोले तैयार हो गए..?" पत्नी बोली --- "आज तो घर में हल्दी -मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने  गयी तो सब दुकानदारों न...

रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है।

रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है। पुराणों स्मृतियों में हम पाते है, शिवजी ने सबको ज्ञान दिया है, सबको समझाया है । लेकिन उन्होंने रावण को कभी नही समझाया ।


किसी ने शंकरजी से पूछा - प्रभु आप सबको समझाते है, आप रावण को क्यों नही समझाते ?
रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है।
रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है।



शंकर जी ने कहा :-क्योंकि मैं रावण को समझता हूं, इसलिए उसे नही समझाता। जो लोग रावण को समझाते है, वह खुद नासमझ हैं।  शंकर जी ने कहा - यह रावण मुझसे जब भी मिलता है, मुझे कहता है, गुरुजी इधर देखिए

शंकर जी बोले - क्या देखूं ??
रावण बोले - देखिए आपके तो 5 सिर है, मेरे तो दस हैं। अब जो खुद को गुरु से दुगना ऐसे ही समझे, 
उसे गुरु समझाए तो भी क्या समझाए ?? ज्ञान तो श्रद्धावान को मिलता है, अहंकारियों को थोड़ी न ज्ञान प्राप्त हो सकता है । 

एक किवदंती के अनुसार बार रावण गया कैलाश और कैलाश को ही सिर पर उठा लिया, कैलाश में हलचल मच गई । पार्वती जी ने पूछा - हे देवाधिदेव यह क्या हो रहा है ?

शंकर जी ने कहा - शिष्य आया है ...

पार्वती ने पूछा - तो इतनी हलचल क्यो है ??

शंकर जी कहा - रावण जैसे शिष्य आएंगे,तो हलचल ही मचेगी ।

किसी ने रावण को पूछा - यह क्या कर रहे हो ?
रावण ने कहा - गुरुजी को शिरोधार्य कर रहे है ...

भला यह कैसा शिरोधार्य ??

शिष्य को तो गुरु के चरणों मे लिपट जाना चाइये,और गुरु उसे अपने हाथों से उठाएं ।

गिरना शिष्य का काम है,और गिरे हुए को उठाना गुरु का काम है और रावण जैसे शिष्य सोचते है,की हम गुरु को ऊपर उठा रहे हैं ।

जब भी हम खुद को गुरु से श्रेष्ठ समझने लग जाए,तो समझिए हमारा नाश सिर पर आ गया है । स्कूल के गुरु हो,या जीवन की शिक्षा देने वाले माता पिता,या हो सतगुरु,उनके तो चरणों मे ही लिपटा रहना चाहिए,कल्याण इसी में है..!!
                   ॐ नमः शिवाय
रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है।
रावण का कैलाश पर्वत को उठाना, जीवन की बहुत बड़ी सीख है।




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