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वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||

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                         वाहे गुरू जी एक मालिक का प्यारा शख्श जिसका नाम करतार था  वह छोले बेचने का कारज करता था  वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||  उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी मदद करती थी  एक बार की बात है कि  एक फकीर जिसके पास खोटे सिक्के थे उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता हैं  तो वह करतार के पास छोले लेने आता हैं करतार ने खोटा  सिक्का देखकर भी  उस मालिक के प्यारे को छोले दे दिए।ऐसे ही चार-पांच दिन  उस फकीर ने करतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए और जब सारे बाजार में अब  यह बात फैल गयी की करतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता हैं पर करतार लोगों की बात सुनकर कभी जबाव नहीं देते थे.. और अपने मालिक की मौज में खुश रहते थे। एक बार जब करतार अरदास  पढ़कर उठे तो अपनी पत्नी से  बोले --- "क्या छोले तैयार हो गए..?" पत्नी बोली --- "आज तो घर में हल्दी -मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने  गयी तो सब दुकानदारों न...

संत वचन एक बार नारद जी एक घर के सामने से निकल रहे थे कि उस |

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 * संत वचन* * एक बार नारद जी एक घर के सामने से निकल रहे थे कि उस घर की स्त्री ने उन्हें बुलाकर पूछा कि हमारी बहु को संतान नहीं हो रही है। आप कृपा करके बताएँ कि उसके भाग्य में संतान सुख है या नहीं?   संत वचन *नारद जी ने उसकी बहु का हाथ देखकर बताया कि माई, इसे इस जन्म में तो क्या, सात जन्मों तक भी संतान नहीं होगी। नारद जी तो ऐसा बता कर चले गए पर भगवान की लीला अपरंपार है। संयोग से उसी समय एक अन्य संत उसी दरवाजे पर आ रुके। न मालूम उनके मन में क्या आया, उनके मुख से निकला- कोई भूखे संत को रोटी खिला दो। जो मुझे एक रोटी देगा, भगवान उसे एक संतान देंगे।* *माई ने सुना तो बोली- महाराज! आप भोजन ग्रहण करें। बात रही संतान की तो जो भाग्य में ही न लिखा हो, वह होना कैसे संभव है? संत कईं दिनों से भूखे थे, सात रोटी खा कर आगे की ओर चले। भगवान की लीला, एक एक वर्ष बीतते बीतते, उस बहु को सात वर्षों में सात संतान हो गईं।* *सात वर्ष बाद नारद जी दोबारा उधर से निकले तो उस आँगन में सात बालक खेलते देख कर, उसी माई के पास रुक कर पूछने लगे कि ये बालक किसके हैं? माई से जाना कि ये बालक तो उसी बहु के हैं, ...

🙏🙏🏻 "आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।"🙏🙏🏻

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 यही हैं कर्मों की नेकी एक राजा ने कबीर साहिब जी से प्रार्थना की की  " आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।" तो कबीर जी ने कहाः "आप तो हर रोज पंडित जी से कथा करवाते हो, सुनते भी हो...?" "हाँ जी महाराज जी ! कथा तो पंडित जी रोज़ सुनाते हैं, विधि विधान भी बतलाते हैं, लेकिन अभी तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए ,आप ही कृपा करें। कबीर साहिब जी बोले "अच्छा मैं कल कथा के वक्त आ जाऊँगा।" अगले दिन कबीर जी वहाँ पहुँच गये, जहाँ राजा पंडित जी से कथा सुन रहा था। राजा उठकर श्रद्धा से खड़ा हो गया, तो कबीर जी  बोले-- "राजन ! अगर आपको प्रभु का दर्शन करना है तो आपको मेरी हर आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।" "जी महाराज मैं आपका हर हुक्म  मानने को तैयार हूँ जी ! राजन अपने वजीर को हुक्म दो कि वो मेरी हर आज्ञा का पालन करे।" राजा ने वजीर को हुक्म दिया कि कबीर साहिब जी जैसा भी कहें, वैसा ही करना। कबीर जी ने वज़ीर को कहा कि एक खम्भे के साथ राजा को बाँध दो  और दूसरे खम्भे के साथ पंडित जी को बाँध दो। राजा ने तुरंत वजीर को इशारा किया कि आज्ञा का पालन हो। दोनों ...

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