मालिक की मौज, मालिक ही जाने।
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बात पुरानी है ग्रेट मास्टर के टाइम की…. एक इंजीनियर साहिब ने सुनाई…. आप से शेयर कर रहा हूँ…..
भंडारे पर बाबा जी 2.30 घंटे का सत्संग किया करते थे…. तब संगत या सत्संग के लिए शेड नही थे,
मालिक की मौज, मालिक ही जाने।
खुले मैं ही सत्संग होता था और रात को संगत तंबुओं मैं सोती थी…..
एक बार भंडारे पर बहुत बारिश हुई, सब इंतज़ाम खराब हो गये, बाबा जी ने कह दिया की कल भी सत्संग होगा….
अब बाहर से आई संगत रात को कहाँ रुकेगी? उनके खाने , सोने का प्रबंध कहाँ और कैसे होगा?
ये बहुत बड़ी प्राब्लम थी, हालाँकि तब बाहर से आई हुई संगत भी 100 -200 ही होती थी, ये फैसला हुआ के सब सेवादार थोड़ी थोड़ी संगत अपने अपने घर ले जायेंगे…और उनका खाने , सोने का प्रबंध भी खुद ही देखेंगे….
अब सब सेवदार थोड़ी थोड़ी संगत अपने अपने साथ ले गये….उनमे से जो सेवादार अमीर थे उनको क्या परवाह थी … संगत की खूब सेवा हुई…. मालिक का हुकम था…. पर
एक सेवदार बहुत ग़रीब था, वो फकीर ही था, बस भजन बंदगी करने वाला, उसका खुद का गुज़ारा जैसे तैसे होता था…. उसके हिस्से मैं भी संगत के 2 लोग आ गये…. वो बेचारा मजबूरी मैं उनको घर ले गया
अब मलिक का हुकम था मना नही कर सकता था….. उसने बेनती की भाईयों मेरे पास तो ज्यादा कुछ है भी नही, आपकी सेवा क्या करूँ?
बस इतना कर सकता हूँ कि आपको बैठने को एक दरी दे देता हूँ और मैं तो सारी रात सोता नही, भजन करता हूँ, दिल चाहे तो आप भी कर लेना… पर विनती है
मुझ ग़रीब का परदा कल सब के सामने मत खोलना और यह कहकर वो भजन पर बैठ गया….वो दोनो भाई भी उसे देख कर भजन पर बैठ गये….
अगले दिन सब संगत रात को हुई अपनी अपनी खातिरदारी के बखान कर रही थी …. पर वो दोनो भाई एक अलग ही आनंद मैं बैठे थे…. उनसे भी प्रबंधको ने पूछा कि सब ठीक था?
मालिक की मौज, मालिक ही जाने।
आपकी सेवा ठीक हुई तो वो दोनो बोले भाई हम आपके शुक्र गुज़ार हैं जो आपने हमें उस भाई के साथ भेजा….उसकी संगत मैं तो रात को हमें वो ख़ज़ाना मिल गया जिसको पाने के लिए लोगों का पूरा जीवन कम पड़ जाता है
हमारी विनती है कि आगे से भी हमें इसी भाई के साथ भेजना और बाबा जी यह बात सुनकर मन्द मन्द मुस्करा रहे थे। उनकी मौज वही जानते हैं l
🙏सतगुरू आयो शरण तुम्हारी 🙏
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