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वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||

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                         वाहे गुरू जी एक मालिक का प्यारा शख्श जिसका नाम करतार था  वह छोले बेचने का कारज करता था  वाहे गुरू जी || waheguru ji || Guru ki Bani ||  उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी मदद करती थी  एक बार की बात है कि  एक फकीर जिसके पास खोटे सिक्के थे उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता हैं  तो वह करतार के पास छोले लेने आता हैं करतार ने खोटा  सिक्का देखकर भी  उस मालिक के प्यारे को छोले दे दिए।ऐसे ही चार-पांच दिन  उस फकीर ने करतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए और जब सारे बाजार में अब  यह बात फैल गयी की करतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता हैं पर करतार लोगों की बात सुनकर कभी जबाव नहीं देते थे.. और अपने मालिक की मौज में खुश रहते थे। एक बार जब करतार अरदास  पढ़कर उठे तो अपनी पत्नी से  बोले --- "क्या छोले तैयार हो गए..?" पत्नी बोली --- "आज तो घर में हल्दी -मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने  गयी तो सब दुकानदारों न...

मालिक बक्शणहार है|The owner is generous

 मालिक बक्शणहार है वो चोर, पापी, अपराधी, खूनी, गिरे से गिरे इंसान को माफ़ कर सकता है वो बड़े से बड़ा गुनाह माफ़ कर देगा लेकिन एक गुनाह है 

जो वो कभी माफ़ नही करता उस गुनाह की कोई बक्शीश नही होती और वो गुनाह है 'नामदान' मिलने के बाद भी 'सिमरन-भजन' न करने का सबसे बड़ा गुनाह इस गुनाह को कभी भी माफ़ नही किया जा सकता, 

क्योंकि यह ऐसा गुनाह है जिसमें हम परमपिता परमात्मा रूप सतगुरु के समक्ष सत्य की राह पर चलने का वादा करके असत्य को अपनाते हैं।

 इसलिए बिना नागा भजन सुमिरन जरूर करो जी "

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